सपने
वे नहीं होते, जो सोते समय दिखते हों, बल्कि सपने
तो वे होते हैं, जो इंसान को सोने न दे। सोते समय देखा जाने वाला सपना तो
हमें याद भी नहीं रहता। पर जो सपने जागी आंखों से देखे जाते हैं, वे
न केवल हमें याद रहते हैं, बल्कि वे हमें
सोने ही नहीं देते। सपने वही सच्चे होते हैं, जिसे हमने
जागी आंखों से देखा है। जिन्हें सपने सोने नहीं देते, वे
महान होते हैं या फिर बन जाते हैं। सपने, दरअसल, हमें
बताते हैं कि जिंदगी कैसी होनी चाहिए? प्रगति के
पथ पर हमारी न्यूनतम उपलब्धियाँ क्या होनी चाहिए ? असल
में हर सफलता का मार्ग सपना देखने से प्रारंभ होता है। हर व्यक्ति सपने में वह
देखता है, जो वह वर्तमान में नहीं है, किन्तु
भविष्य में अवश्य होना चाहेगा।हर बच्चा सपना देखता है कि आनेवाले कल में वह
डाॅक्टर बनेगा, इंजीनियर बनेगा या अपना स्वतंत्र व्यवसाय करेगा। यह सपना
उसकी भावी जिंदगी को और उसके प्रयासों को स्वतः वांछित पथ पर डाल देता है। बच्चे
के कदम ख़ुद-ब-ख़ुद उस दिशा को पकड़ने लगते हैं।
मनुष्य
जीवन का इतिहास बताता है कि उसकी सफलता और प्रगति की कहानी सपने से शुरू होती है।
पिछली शताब्दी में मनुष्य ने वायुयान की कल्पना भी नहीं की थी। वह ऊँचे आकाश में
उड़ते पक्षियों को देखता और उसवेफ हृदय में कसक उठती कि मैं क्यों नहीं उड़ सकता।
पक्षियों का उड़ना उसे एक सपना दे गया, यदि मैं भी
इस पक्षी की भाँति नभ में उड़ सकूँ, तो कितना
अच्छा हो! राइट
बंधुओं ने, जिन्होंने
मनुष्य के उड़ान-संबंधी बहुत-से प्रयोग किए, अनुभव किया
कि नभ में पंख फैलाकर विचरना कितना सुखद और गरिमापूर्ण हो सकता है। इस सपने को
पकड़कर वे चलते गए, चलते गए। उन्होंने सैकड़ों प्रयोग किए। सफलताएँ और असफलताएँ
आईं, पर धीरे-धीरे एक दिशा बनती गई। अंततः वे सफल हुए।इस
सबके पीछे अथक परिश्रम और लक्ष्य में अडिग आस्था का सबसे बड़ा हाथ था। आज वायुयान
साधारण बात है। आज तो मनुष्य ने आकाश की ऊँचाइयाँ और सागर की गहराइयाँ नाप ली हैं।
हर
व्यक्ति सपना देखता है कि उसका परिवार समद्ध हो, उसके
घर में किसी वस्तु का अभाव न हो, उसके
परिजनों को अच्छा वातावरण मिले, प्रगति के
भरपूर अवसर मिलें, रोग, दुःख या पीड़ा न आए। व्यक्ति पूरे जीवन किसी-न-किसी तरह इन
सपनों को साकार करने की कोशिश करता रहता है। हर वह व्यक्ति, जो
अपने देश को प्यार करता है, एक ऐसे संसार का स्वप्न मन में सँजोए हुए रहता है, जहाँ
बच्चों से प्रेम किया जाए। वे सबल, स्वस्थ, सुपोषित, सुशिक्षित
एवं सुरक्षित हों। हम भी एक ऐसे संसार का स्वप्न सँजोए हैं, जहाँ
वृद्धजन उस सम्मान एवं अवलंब को प्राप्त करें, जिसके वे
अधिकारी हैं और गरिमा के साथ अपना जीवन व्यतीत करें। हम ऐसे संसार का स्वप्न सँजोए
हैं, जहाँ सभी भूखों को भोजन मिले, रोने
वालों का व्रंफदन सुना जाए तथा जो रोगग्रस्त हैं, उनकी
सेवा-शुश्रूषा हो और वे रोगमुक्त हो सकें। हम ऐसे संसार का स्वप्न सँजोए हैं, जहाँ
शिक्षा तथा गरिमापूर्ण जीवन सभी को सुलभ हो। हम ऐसे संसार का स्वप्न सँजोए हैं, जो
युद्ध एवं हिंसा से मुक्त हो। काम के लिए लगन की जरूरत होती
है, इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। मानव विकास के
इतिहास को, जो हजारों-लाखों साल की अवधि तक फैला हुआ है, एक
दार्शनिक ने सिर्फ एक पंक्ति में समेटकर रख दिया था, जब उसने
ये शब्द लिखे थे कि ‘मनुष्य ने सोचा, इच्छा की, इरादा किया और फिर वह अपनी पीठ के बल पर सीधा खड़ा हो गया।’ आप समझ
सकते हैं कि दार्शनिक ने हमें और दुनिया भर के सारे इंसानों को क्या सीख दी है? उसने कहा
है और बिलकुल सही कहा है कि जब तक विचार, इच्छा, संकल्प
तथा कार्यक्षमता में पूरी तरह मेल नहीं होगा, तब तक
दुनिया का कोई भी व्यक्ति सफलता के शिखर तक नहीं पहुँच सकता। विचार कीजिए, विचार को
इच्छा की ऊर्जा दीजिए और इच्छा की ऊर्जा को संकल्प के इस्पात में ढालिए और फिर इस
इस्पात को कर्म की विधि से वह आकार दे दीजिए, जो आप
देना चाहते हैं। लेकिन सबसे पहले सपने देखिए।
डा महेश परिमल
संक्षिप्त परिचय : छत्तीसगढ़ की सौंधी माटी में जन्मे महेश परमार ‘परिमल’ मूलत: एक
लेखक हैं। बचपन से ही पढ़ने के शौक ने युवावस्था में लेखक बना दिया। आजीविका के
रूप में पत्रकारिता को अपनाने के बाद लेखनकार्य जीवंत हो उठा। एक ऐसा व्यक्तित्व
जिसके सपने कभी उसकी पलकों में कैद नहीं हुए, बल्कि
पलकों पर तैरते रहे और तैरते-तैरते किनारों को अपनी एक पहचान दे ही दी। आज लेखन की
दुनिया का इनका भी एक जाना-पहचाना नाम है।
भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. का गौरव प्राप्त। अब तक सम-सामयिक
विषयों पर एक हजार से अधिक आलेखों का प्रकाशन। आकाशवाणी के लिए फीचर-लेखन, दूरदर्शन
के कई समीक्षात्मक कार्यक्रमों की सहभागिता। पाठच्यपुस्तक लेखन में भाषा विशेषज्ञ
के रूप में शामिल। विश्वविद्याल स्तर पर अंशकालीन अध्यापन। अब तक दो किताबों का
प्रकाशन। पहली ‘लिखो पाती प्यार भरी’ को
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा दुष्यंत कुमार स्मृति पुरस्कार, दूसरी
किताब ‘अनदेखा सच’ को पाठकों ने विशेष रूप से सराहा।
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