LILAVATI (12TH CENTURY)
जहा आज भारतीय नारी समाज में
अपनी जगह बनाने में लगी हैं और फिर से
अपने को स्थापित करने में लगी हैं|वही
प्राचीन काल में भारतीय नारी
सभी विषयों में रूचि लेती थी | सिर्फ रूचि
ही नहीं वो उन विषयों की सभाओ में
तर्क-वितर्क करने के लिए भाग लेती थी | आज
गणित जैसे विषय को लड़किया क्या लड़के भी कम पसंद
करते है वही 12 वी शताब्दी में
लीलावती नाम की महिला
जानी-मानी गणितज्ञ थी |
ईस्वीं सन् ग्यारह सौ चौदह में जन्मे भास्कराचार्य को संसार
के एक महान गणितज्ञ के रूप में जाना जाता है।पर उनके गणित के
ग्रन्थ लिखने में उनकी बेटी
लीलावती का भी बहुत बड़ा हाथ रहा
था | जब विवाह के एक वर्ष के अंदर ही
लीलावती के पति की मृत्युख हो
गयी और लीलावती अपने पिता के घर
में ही रहने लगी |
लीलावती को अपने पिताजी के ज्ञान
पर और ज्योेतिष पर विश्वाखस हो गया क्योकि उनकी
ज्योतिषी की गणना के हिसाब से ऐसा होना
ही था । भास्कर से अपनी विधवा
पुत्री की ग़मगीन हालत
देखी नहीं जा रही थी
इसलिए वो उसे किसी कार्य में व्यस्त रखना चाहते थे इसके
लिए गणित उनके पास एक अच्छा विषय था जिसके वो प्रख्यात विद्वान
थे और लीलावती को भी अपने पिता पर
भरोसा होने लगा था इसलिए वह पिता के साथ ही गणित और
ज्यो तिष के अध्य्यन में जुट गयी। भास्कराचार्य ने
अपनी बेटी लीलावती को
गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो पद्य में होते थे।
वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे। उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके
गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे। कंठस्थ करने के पहले
भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में,
धीरे-धीरे समझा देते थे। वे बच्ची को
प्यार से संबोधित करते चलते थे, "हिरन जैसे नयनों वाली
प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र
हैं...।" बेटी को पढ़ाने की इसी
शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान
ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने
"लीलावती" रख दिया। बेशक आजकल गणित एक
शुष्क विषय माना जाता है। पर भास्कराचार्य का ग्रंथ
‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ
मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा
सकता है, इसका नमूना है। लीलावती का एक
उदाहरण देखें-
‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा
षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा
की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष
छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई। अये,
बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस
कमल समूह में कुल कितने फूल थे?‘ उत्तर-१२० कमल के फूल।
वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,
लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल
वर्ग कहलाता है। दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग
कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का
गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस
भी घन है।‘
‘मूल‘ शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या
व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में
प्रयुक्त होता है। इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का
अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘।
इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता
है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित
थीं।
लीलावती के प्रश्नोंथ का जबाब देने के क्रम में
ही "सिद्धान्त शिरोमणि" नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया ,
जिसके चार भाग हैं
(१) लीलावती
(२)बीजगणित
(३) ग्रह गणिताध्याय और
(४) गोलाध्याय।
‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और
काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को
समझाया गया है।
बादशाह अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् १५८७ में
"लीलावती" का फारसी भाषा में अनुवाद
किया। अंग्रेजी में "लीलावती" का पहला
अनुवाद जे. वेलर ने सन् १७१६ में किया। कुछ समय पहले तक
भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे
कि पन्द्रह का पहाड़ा ...तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के
नब्बे... अट्ठबीसा, नौ पैंतीसा...। इसी
तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय
सूत्र में था, "सि अप जूनो तीस के, बाकी के
इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे
सन् उनतीस!"
इस तरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद
लीलावती भी एक महान गणितज्ञ
एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी
गयी |
आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में
लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है |
पर आज जहा विदेशी लोग हमारे वेदिक गणित पर भरोसा
करके उसे अपने बच्चो को सीखाते हैं वही हम
अपनी संस्कृति के प्रति बिलकुल उदासीन हैं
इसका एक उदहारण इस लिंक से पता चल जायेगा....
अपने को स्थापित करने में लगी हैं|वही
प्राचीन काल में भारतीय नारी
सभी विषयों में रूचि लेती थी | सिर्फ रूचि
ही नहीं वो उन विषयों की सभाओ में
तर्क-वितर्क करने के लिए भाग लेती थी | आज
गणित जैसे विषय को लड़किया क्या लड़के भी कम पसंद
करते है वही 12 वी शताब्दी में
लीलावती नाम की महिला
जानी-मानी गणितज्ञ थी |
ईस्वीं सन् ग्यारह सौ चौदह में जन्मे भास्कराचार्य को संसार
के एक महान गणितज्ञ के रूप में जाना जाता है।पर उनके गणित के
ग्रन्थ लिखने में उनकी बेटी
लीलावती का भी बहुत बड़ा हाथ रहा
था | जब विवाह के एक वर्ष के अंदर ही
लीलावती के पति की मृत्युख हो
गयी और लीलावती अपने पिता के घर
में ही रहने लगी |
लीलावती को अपने पिताजी के ज्ञान
पर और ज्योेतिष पर विश्वाखस हो गया क्योकि उनकी
ज्योतिषी की गणना के हिसाब से ऐसा होना
ही था । भास्कर से अपनी विधवा
पुत्री की ग़मगीन हालत
देखी नहीं जा रही थी
इसलिए वो उसे किसी कार्य में व्यस्त रखना चाहते थे इसके
लिए गणित उनके पास एक अच्छा विषय था जिसके वो प्रख्यात विद्वान
थे और लीलावती को भी अपने पिता पर
भरोसा होने लगा था इसलिए वह पिता के साथ ही गणित और
ज्यो तिष के अध्य्यन में जुट गयी। भास्कराचार्य ने
अपनी बेटी लीलावती को
गणित सिखाने के लिए गणित के ऐसे सूत्र निकाले थे जो पद्य में होते थे।
वे सूत्र कंठस्थ करना होते थे। उसके बाद उन सूत्रों का उपयोग करके
गणित के प्रश्न हल करवाए जाते थे। कंठस्थ करने के पहले
भास्कराचार्य लीलावती को सरल भाषा में,
धीरे-धीरे समझा देते थे। वे बच्ची को
प्यार से संबोधित करते चलते थे, "हिरन जैसे नयनों वाली
प्यारी बिटिया लीलावती, ये जो सूत्र
हैं...।" बेटी को पढ़ाने की इसी
शैली का उपयोग करके भास्कराचार्य ने गणित का एक महान
ग्रंथ लिखा, उस ग्रंथ का नाम ही उन्होंने
"लीलावती" रख दिया। बेशक आजकल गणित एक
शुष्क विषय माना जाता है। पर भास्कराचार्य का ग्रंथ
‘लीलावती‘ गणित को भी आनंद के साथ
मनोरंजन, जिज्ञासा आदि का सम्मिश्रण करते हुए कैसे पढ़ाया जा
सकता है, इसका नमूना है। लीलावती का एक
उदाहरण देखें-
‘निर्मल कमलों के एक समूह के तृतीयांश, पंचमांश तथा
षष्ठमांश से क्रमश: शिव, विष्णु और सूर्य की पूजा
की, चतुर्थांश से पार्वती की और शेष
छ: कमलों से गुरु चरणों की पूजा की गई। अये,
बाले लीलावती, शीघ्र बता कि उस
कमल समूह में कुल कितने फूल थे?‘ उत्तर-१२० कमल के फूल।
वर्ग और घन को समझाते हुए भास्कराचार्य कहते हैं ‘अये बाले,
लीलावती, वर्गाकार क्षेत्र और उसका क्षेत्रफल
वर्ग कहलाता है। दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग
कहलाता है। इसी प्रकार तीन समान संख्याओं का
गुणनफल घन है और बारह कोष्ठों और समान भुजाओं वाला ठोस
भी घन है।‘
‘मूल‘ शब्द संस्कृत में पेड़ या पौधे की जड़ के अर्थ में या
व्यापक रूप में किसी वस्तु के कारण, उद्गम अर्थ में
प्रयुक्त होता है। इसलिए प्राचीन गणित में वर्ग मूल का
अर्थ था ‘वर्ग का कारण या उद्गम अर्थात् वर्ग एक भुजा‘।
इसी प्रकार घनमूल का अर्थ भी समझा जा सकता
है। वर्ग तथा घनमूल निकालने की अनेक विधियां प्रचलित
थीं।
लीलावती के प्रश्नोंथ का जबाब देने के क्रम में
ही "सिद्धान्त शिरोमणि" नामक एक विशाल ग्रन्थ लिखा गया ,
जिसके चार भाग हैं
(१) लीलावती
(२)बीजगणित
(३) ग्रह गणिताध्याय और
(४) गोलाध्याय।
‘लीलावती’ में बड़े ही सरल और
काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को
समझाया गया है।
बादशाह अकबर के दरबार के विद्वान फैजी ने सन् १५८७ में
"लीलावती" का फारसी भाषा में अनुवाद
किया। अंग्रेजी में "लीलावती" का पहला
अनुवाद जे. वेलर ने सन् १७१६ में किया। कुछ समय पहले तक
भी भारत में कई शिक्षक गणित को दोहों में पढ़ाते थे। जैसे
कि पन्द्रह का पहाड़ा ...तिया पैंतालीस, चौके साठ, छक्के
नब्बे... अट्ठबीसा, नौ पैंतीसा...। इसी
तरह कैलेंडर याद करवाने का तरीका भी पद्यमय
सूत्र में था, "सि अप जूनो तीस के, बाकी के
इकतीस, अट्ठाईस की फरवरी चौथे
सन् उनतीस!"
इस तरह गणित अपने पिता से सीखने के बाद
लीलावती भी एक महान गणितज्ञ
एवं खगोल शास्त्री के रूप में जानी
गयी |
आज गणितज्ञो को गणित के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में
लीलावती पुरूस्कार से सम्मानित किया जाता है |
पर आज जहा विदेशी लोग हमारे वेदिक गणित पर भरोसा
करके उसे अपने बच्चो को सीखाते हैं वही हम
अपनी संस्कृति के प्रति बिलकुल उदासीन हैं
इसका एक उदहारण इस लिंक से पता चल जायेगा....
By - Hardik Parmar
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