Insaniyat ke bare me bahut hi achhi Kavita
Awesome Poem
Kya manavta aaj bhi zinda he?
✍आज कल जब भी अखबारों में दंगो की ख़बरें आती हैं, तो दिल उदास हो जाता है!
अक्सर मन में ये सवाल उठता है की इन्सान इतना नासमझ कैसे हो सकता है जो जाति, धर्म के नाम पर अपनों का ही खून बहाए! इसी सोच को मैंने एक कविता रूप दिया है!
#Love_till_the_end_of_Heartbeat
✍आज हम सभ्य और सुजान बन गए,
आधे हिन्दू आधे मुस्लमान बन गए,
अब भी रगों में बहता लहू का रंग तो एक है,
फिर क्यों आज धर्म ही हमारी पहचान बन गए ?
किसने देखा है भगवान को?
किसने ख़ुदा का दीदार किया है?
बस पंडितो और मौलवियों की जुबान पर,
आज राम और रहीम के मकान बन गए!
इंसानियत के प्यार भरे गुलशन में,
रंजिशो और साजिशो के गुलदान लग गए !
गैर मजहबी सीने में खंजर उतारना,
आज धर्मपरस्तो के ईमान बन गए!
साथ साथ देखे थे हमने, जंग-ए आज़ादी के धूप-छाँव!
अंग्रेजी गोलियों ने भी नहीं किया,हमारे सीनों में भेदभाव!
तो फिर क्यों अचानक गली-कूचे शमशान बन गए ?
आजाद होते ही क्यों भारत और पाकिस्तान बन गए?
आज तीज त्योहारों में जश्न मनाना,
जैसे दिल के टूटे अरमान बन गए!
मासूम चेहरों पर फ़ीकी सी हंसी भी,
अब चंद लम्हों के मेहमान बन गए!
हर गली, हर कसबे में सिसक रही है जिंदगी,
अपनों से बिछड़ने के गम में बिलख रही है जिंदगी,
बंद कमरे के उदास कोनो में दुबके रहना,
जिंदगी जीने के यही अब नए आयाम बन गए!
#Love_till_the_end_of_Heartbeat
Share More with your all the friends...
Because Sharing is Caring
★●▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬●★
★☆●BY – HARDIK.PARMAR ●☆★
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✍आज हम सभ्य और सुजान बन गए,
आधे हिन्दू आधे मुस्लमान बन गए,
अब भी रगों में बहता लहू का रंग तो एक है,
फिर क्यों आज धर्म ही हमारी पहचान बन गए ?
किसने देखा है भगवान को?
किसने ख़ुदा का दीदार किया है?
बस पंडितो और मौलवियों की जुबान पर,
आज राम और रहीम के मकान बन गए!
इंसानियत के प्यार भरे गुलशन में,
रंजिशो और साजिशो के गुलदान लग गए !
गैर मजहबी सीने में खंजर उतारना,
आज धर्मपरस्तो के ईमान बन गए!
साथ साथ देखे थे हमने, जंग-ए आज़ादी के धूप-छाँव!
अंग्रेजी गोलियों ने भी नहीं किया,हमारे सीनों में भेदभाव!
तो फिर क्यों अचानक गली-कूचे शमशान बन गए ?
आजाद होते ही क्यों भारत और पाकिस्तान बन गए?
आज तीज त्योहारों में जश्न मनाना,
जैसे दिल के टूटे अरमान बन गए!
मासूम चेहरों पर फ़ीकी सी हंसी भी,
अब चंद लम्हों के मेहमान बन गए!
हर गली, हर कसबे में सिसक रही है जिंदगी,
अपनों से बिछड़ने के गम में बिलख रही है जिंदगी,
बंद कमरे के उदास कोनो में दुबके रहना,
जिंदगी जीने के यही अब नए आयाम बन गए!
अक्सर मन में ये सवाल उठता है की इन्सान इतना नासमझ कैसे हो सकता है जो जाति, धर्म के नाम पर अपनों का ही खून बहाए! इसी सोच को मैंने एक कविता रूप दिया है!
#Love_till_the_end_of_Heartbeat
✍आज हम सभ्य और सुजान बन गए,
आधे हिन्दू आधे मुस्लमान बन गए,
अब भी रगों में बहता लहू का रंग तो एक है,
फिर क्यों आज धर्म ही हमारी पहचान बन गए ?
किसने देखा है भगवान को?
किसने ख़ुदा का दीदार किया है?
बस पंडितो और मौलवियों की जुबान पर,
आज राम और रहीम के मकान बन गए!
इंसानियत के प्यार भरे गुलशन में,
रंजिशो और साजिशो के गुलदान लग गए !
गैर मजहबी सीने में खंजर उतारना,
आज धर्मपरस्तो के ईमान बन गए!
साथ साथ देखे थे हमने, जंग-ए आज़ादी के धूप-छाँव!
अंग्रेजी गोलियों ने भी नहीं किया,हमारे सीनों में भेदभाव!
तो फिर क्यों अचानक गली-कूचे शमशान बन गए ?
आजाद होते ही क्यों भारत और पाकिस्तान बन गए?
आज तीज त्योहारों में जश्न मनाना,
जैसे दिल के टूटे अरमान बन गए!
मासूम चेहरों पर फ़ीकी सी हंसी भी,
अब चंद लम्हों के मेहमान बन गए!
हर गली, हर कसबे में सिसक रही है जिंदगी,
अपनों से बिछड़ने के गम में बिलख रही है जिंदगी,
बंद कमरे के उदास कोनो में दुबके रहना,
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