ये हैं भारत की सबसे शातिर चोरियां. विश्वास नहीं होगा जब जानोगे इनके पीछे का रहस्य
अपराधी कई तरह के होते हैं. कुछ होते हैं छोटे-मोटे उठाईगिरे, उच्चके, चोर जो कुछ पैसों के लिए अपराध करते हैं और अंततः पकड़े जाते हैं. लेकिन कुछ अपराधी ऐसे होते हैं जो कई करोड़ों का घपला करने के बाद भी बच निकलते हैं … कुछ समय के लिए, क्योंकि अपराधी कितना भी शातिर क्यों न हो, कभी न कभी क़ानून के शिकंजे में फंस ही जाता है. भारत में भी ऐसी कई चोरियां हुई हैं जिन्होंने प्रशासन, पुलिस और जनता की नींद हराम कर दी थी, क्योंकि ये चोर थे ही इतने शातिर. लेकिन अंत में हर बुरे काम का फल वही होता है... हवालात की हवा. तो आज नज़र डालते हैं ऐसी ही कुछ हैरतअंगेज चोरियों पर.
1. सिक्योरिटी स्कैम - 1991
हर्षद मेहता का नाम शायद आप सभी ने सुना होगा. साधारण से गुजराती जैन परिवार में जन्मे हर्षद की महत्वकांक्षाएं आसमान से भी ऊपर थीं.
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हर्षद मेहता एक शेयर ब्रोकर था जो 1991 के BSE सेंसेक्स घपले के बाद सुर्ख़ियों में आया था. इस स्कैम से हर्षद मेहता ने इतना पैसा बनाया, जिसका अंदाजा इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को आज तक नहीं है.
1990 की शुरुआत में बैंकों को एक निश्चित धनराशि अपने पास हमेशा रखनी पड़ती थी जिसे कहा जाता था SLR (Statutory Liquidity Ratio) और हर शुक्रवार इस राशि का ब्यौरा प्रशासन को देना होता था. इस स्थिति में ये होता था कि कुछ बैंकों के पास ये राशि ज़्यादा होती थी और कुछ के पास कम. यहां काम आते थे शेयर ब्रोकर.
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हर्षद मेहता ने इस खेल को अच्छे से समझा और अपने प्यादे बिछाने शुरू किये. जिस बैंक के पास राशि कम होती, हर्षद उसके पास जाते और कहते कि वो कई ऐसे बैंकों को जानते हैं जिनके पास ज़्यादा राशि है और वो उनकी मदद कर सकते हैं. फिर हर्षद उस बैंक से अपने नाम का चेक लेते (जो कानूनन गैरकानूनी था लेकिन हर्षद की बैंक अधिकारियों से जान-पहचान बहुत अच्छी थी) और आश्वासन देते कि वो निश्चित राशि का इंतज़ाम कर देंगे. ऐसे फिर वो दूसरे बैंक के पास जाते और उन्हें भी वही आश्वासन देते. ऐसा करते-करते हर्षद ने कई बैंकों से अपने नाम का चेक बनवाया और इस पैसे को स्टॉक मार्केट में invest कर दिया. इससे शेयर मार्केट में गज़ब का उछाल आया, लेकिन ये सब हर्षद का किया-धरा था. असल में ये नकली उछाल था जिसकी वजह से शेयर मार्केट कभी भी मुंह के बल गिर सकता था और आखिरकार वही हुआ.
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जब बैंकों को पता चला कि ये सब एक बड़ा घपला है तो शेयर मार्केट उसी दिन बुरी तरह गिर गया. कई शेयर व्यापारियों ने अपनी ज़िन्दगी की सारी पूंजी गंवा दी, कई बैंकों के मुख्य अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया और विजया बैंक के चेयरमैन ने तो अपनी ही बिल्डिंग से कूद कर ख़ुदकुशी कर ली. पुलिस ने हर्षद मेहता पर सैकड़ों मुक़दमे ठोके, लेकिन अंत में उस पर 27 मुक़दमे दर्ज हुए जिसमें से उसे सिर्फ़ एक ही सज़ा हुई. कहते हैं कि आज तक कोई नहीं जान पाया है कि हर्षद मेहता ने इस घपले से जो धनराशि इकठ्ठा की थी वो कहां है, कितनी है और किसके पास है.
2. मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ़ नटवरलाल
नटवरलाल का नाम भारत में कौन नहीं जानता. नटवरलाल इतना शातिर चोर था कि उसने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का सिग्नेचर कॉपी करके ताज महल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और 545 सांसद तक बेच दिए थे.
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ये भी कहा जाता है कि नटवरलाल ने समाज सेवक बन कर टाटा, बिरला और धीरूभाई अम्बानी जैसे बड़े उद्योगपतियों से भी लाखों रुपये ऐंठ लिए थे. नटवरलाल के ख़िलाफ 100 से ज़्यादा मामले दर्ज थे, आठ राज्यों की पुलिस उसे ढूंढ रही थी और उसे 113 सालों की सज़ा हुई थी. लेकिन नटवरलाल कहां इतनी आसानी से पकड़ा जाने वाला था. नौ बार पुलिस ने नटवरलाल को पकड़ा था और आठ बार वो जेल से फरार हो गया. 1996 में नटवरलाल को आखरी बार पकड़ा गया था जब उसकी उम्र 84 साल थी लेकिन फिर भी वो पुलिस को चकमा दे कर भाग गया. नटवरलाल को आखरी बार 24 जून, 1996 में देखा गया था.
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खबर ये भी है कि बिहार में नटवरलाल का गांव है, जहां के लोग उसके सम्मान में एक मूर्ति भी बनाने वाले हैं. नटवरलाल के वकील, नन्दलाल जैसवाल का कहना है कि उसकी मृत्यु 2009 में 97 साल की उम्र में हुई, लेकिन नटवरलाल के भाई, गंगा प्रसाद श्रीवास्तव के अनुसार नटवरलाल का अंतिम संस्कार 1996 में हुआ था.
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3. ATM कांड- 2012
2012 में कुछ लोगों ने पंजाब और केरेला में ऐसा घपला किया था जिसकी वजह से उन्होंने कई बैंकों से करोड़ों रुपये लूट लिए थे. ATM मशीन में एक सिस्टम होता है जिसमें अगर आप 42 सेकंड में रुपये नहीं निकालते हैं तो वो राशि मशीन के अंदर चली जाती है और रुपये आपके खाते में फिर से जमा हो जाते हैं. इन चोरों ने इस ही डिज़ाइन का फायदा उठाया.
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इन चोरों का गिरोह अलग-अलग बैंकों के ATM में जाता और एक निश्चित राशि निकालने का आदेश देता, जब राशि ATM मशीन से बाहर आती तो वो सिर्फ़ कुछ रुपये ही निकालते और बाकी राशि फिर से ATM मशीन के अंदर चली जाती. अब मशीन को तो पता नहीं होता कि सिर्फ़ कुछ ही रुपये निकाले गए हैं, फलस्वरूप पूरी राशि फिर से उनके खाते में जमा हो जाती. जैसे आपने मशीन को 10,000 रुपये निकालने का आदेश दिया, जब रुपये बाहर आये तो आपने 9,000 रुपये निकाल लिए और बाकी 1,000 ATM मशीन में वापस चले गए. लेकिन आपके खाते में 10,000 रुपये ही वापस जमा हो जाएंगे.
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इस तकनीक का उपयोग कर के पंजाब के गैंग ने केरेला के फेडरल बैंक से 75 लाख रुपये लूट लिए. जब बैंक को इस घपले की भनक पड़ी तो उन्होंने पुलिस को खबर किया. केरेला और पंजाब की पुलिस ने इस मामले में 6 लोगों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने ये कबूल किया कि दूसरे बैंकों से भी उनके गिरोह ने कई लाखों रुपये का घपला किया था. इस गैंग ने अलग-अलग बैंकों से करीब 2 करोड़ रुपये लूटे थे.
इस कांड के बाद NPCI (National Payments Corporation of India) ने तुरंत एक निर्देश जारी किया जिसमें बैंकों को आदेश था कि वो ये नोट वापस जाने वाली सुविधा जल्द-से-जल्द बंद कर दें. RBI के अंतिम निर्देश के बाद इसे पूरे देश में लागू किया गया, इसीलिए अगर आप देखेंगे तो आज-कल की ATM मशीन में ये सुविधा बंद कर दी गयी है.
4. ओपेरा हाउस डकैती- 1987
स्पेशल 26 फिल्म शायद आपने देखी होगी जो सत्य घटना पर आधारित है. उस फिल्म में दिखाया था कि चार लोगों ने नकली CBI इंस्पेक्टर बन कर मुंबई की एक ज्वेलरी शॉप लूट ली. लेकिन असलियत जान कर आप चौंक जाएंगे क्योंकि इस चोरी को अंजाम सिर्फ़ एक आदमी ने दिया था.
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19 मार्च, 1987 के दिन मुंबई पुलिस मुख्यालय को एक कॉल आया जो था मुंबई के सबसे बड़े ज्वेलरी स्टोर, ओपेरा हाउस से. उनकी शिकायत थी कि CBI की एक टीम ने उनके स्टोर पर छापा मारा और उस टीम का लीडर लाखों के जेवरात ले कर गायब हो गया है. जब असली पुलिस वहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि नकली CBI की पूरी टीम वहीं थी, बस उनका लीडर गायब था. और उनके लीडर का नाम था, मोहन सिंह.
मोहन सिंह ने 18 मार्च को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक AD निकाला था जिसमें ये लिखा था कि 'इंटेलिजेंस अफसर और सिक्योरिटी अफसर की पोस्ट के लिए जुझारू और सक्रिय लोग चाहिए'. जब ये उम्मीदवार ताज कॉन्टिनेंटल होटल पहुंचे तो उनका इंटरव्यू लिए गया और 26 लोगों को चुना गया. इन लोगों को आइडेंटिटी कार्ड दिए गए और एक बस में बैठा कर ओपेरा हाउस ले जाया गया. वहां जैसा मोहन सिंह ने सोचा था वही हुआ. ओपेरा हाउस के मालिक, प्रताप जावेरी CBI का नाम सुन कर इतना डर गए थे कि उन्होंने किसी प्रकार का विरोध नहीं किया. इसी अफ़रातफ़री का फायदा उठा कर मोहन सिंह लाखों के जेवरात ले कर वहां से रफ़ूचक्कर हो गया.
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सबसे हैरतअंगेज बात ये है कि मोहन सिंह आज तक नहीं पकड़ा गया है. पुलिस के हिसाब से ये एक 'परफेक्ट क्राइम' था.
5. पंजाब नेशनल बैंक डकैती- 1987
12 फरवरी, 1987 में लाभ सिंह नाम के इंसान ने पंजाब नेशनल बैंक, लुधियाना ब्रांच से करीब 6 करोड़ रुपये लूट लिए थे. जब सुनोगे कि कैसे तो पक्का हंसी आएगी.
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लाभ सिंह और उसके कुछ साथी पंजाब नेशनल बैंक की ब्रांच में गए और सारे कर्मचारियों और बैंक में आये हुए लोगों को बंदी बना लिया और बैंक का मुख्य दरवाज़ा बंद कर दिया. फिर उन्होंने बैंक के ही फ़ोन से पुलिस को कॉल लगाया कि शहर के किसी और बैंक में डकैती हो रही है. ये सुन कर पुलिस अपनी पूरी फ़ोर्स के साथ उस ब्रांच की तरफ चली गयी. लाभ सिंह और उसके साथियों ने बड़े आराम से बैंक लूटा और चलते बने.
इसको कहते हैं... बड़े आराम से!
तो ये थीं कुछ घटनाएं, चोरियां और डकैतियां जिन्होंने पुलिस और प्रशासन के छक्के छुड़ा दिए थे. कहते हैं न कि तेज़ दिमाग अगर गलत हरकतों में लग जाए तो बहुत नुकसान पहुंचा सकता है. इन घटनाओं के बारे में सुन कर लगता है कि ये बात सच है.
वैसे आपके हिसाब से इन सब में से सबसे शातिर चोर कौन था? कमेंट कर के बताओ.
BY - HARDIK PARMAR
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