सीमा के इस पार तो लोग सुरक्षित नहीं हैं, और सीमा पार रह कर देश के लिए अहम जानकारियां मुहैय्या कराना कोई बच्चों का खेल नहीं है.
2. पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट की भूमिका के बाद वे इस्लामाबाद में स्थित भारतीय हाई कमीशन के लिए 6 वर्षों तक काम करते रहे.
अब भी आप कुछ कहना चाहते हैं क्या?
3. क्या आपको कांधार में IC-814 का अपहरण याद है? इस पूरे प्रकरण में अपहृत लोगों को सुरक्षित वापस बुलाने में उनकी अहम भूमिका थी.
4. सन् 1971 से 1999 के बीच वे 15 ऐसे अपहरण के मामले सुलझा चुके हैं.
5. सन् 1986 में वे मिज़ोरम में फील्ड एजेंट की भूमिका में थे. वहां उन्होंने मिज़ो नेशनल फ्रंट बना कर भारत सरकार के खिलाफ़ हथियार उठा चुके लड़ाकों को समझा-बुझा कर और बलपूर्वक हथियार छोड़ने हेतु मना लिया. उन्होंने मिज़ो लड़ाकों को शांति मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किया.
इस पूरे प्रकरण और भारतीय राज्य मशीनरी के घुसपैठ से मिज़ो लड़ाकों का मनोबल टूट गया, और इस प्रकार 20 सालों से चली आ रही अंतर्कलह व विरोध का अंत हो गया.
6. सन् 80 के दशकों में वे बतौर पाकिस्तानी एजेंट गोल्डन टेंपल में दाखिल हुए थे और खालिस्तान के लिए लड़ रहे लड़ाकों से अहम जानकारियां बाहर ले आए थे.
कहा जाता है कि वे एक रिक्शा चालक के वेश में वहां दाखिल हुए थे. ऑपरेशन ब्लैक थंडर ने विद्रोहियों को आत्मसमर्पण पर मजबूर कर दिया था.
7. उन्होंने कश्मीर के विरोधी कूका परे और उसके साथी लड़ाकों को प्रतिवादी ताकत बनने के लिए मना लिया.
इसकी वजह से जम्मू कश्मीर में 1996 से चुनाव हो रहे हैं.
8. वे सबसे कम उम्र के पुलिस अफ़सर हैं जिन्हें विशेष सेवा के लिए पुलिस मेडल मिला था.
उन्हें इस तमगे को हासिल करने में सिर्फ़ 6 साल लगे.
9. सन् 2014 के जून माह में इस्लामिक स्टेट द्वारा बंधक बनाई गयी 46 भारतीय नर्सों को वे सबके चंगुल से सुरक्षित वापस ले आए.
यह मामला इराक़ के टिकरित का है.
10. अजीत न सिर्फ़ एक बेहतरीन खूफ़िया जासूस हैं बल्कि एक बढ़िया रणनीतिकार भी हैं. वे कश्मीरी अलगाववादियों जैसे यासिन मलिक, शब्बीर शाह के बीच भी उतने ही पॉपुलर हैं जितना भारत के आला अफ़सरों के बीच.
गर उन्हें एक बेहतरीन मनोवैज्ञानिक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
11. देश में शांति के दौरान दिये जाने वाले प्रशस्ति तमगे, कीर्ति चक्र से भी उन्हें नवाज़ा जा चुका है.
इसमें ऑपरेशन ब्लैक थंडर की बहुत ही अहम भूमिका रही है.
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि हम जेम्स बॉन्ड के बजाय अजीत डोवाल पर क्यों फिदा रहते हैं. और हमारे देश को ऐसे कितने ही अजीत डोवाल की ज़रूरत हैं.
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